Tuesday, January 8, 2019

फ़ुर्सत की इक शाम निकालो

फ़ुर्सत की इक शाम निकालो
यारों बैठो जाम निकालो।

तुम बदलोगे इस दुनिया को
दिल से ये औहाम निकालो।

(औहाम = भ्रम)

इतना कर दो मेरी ख़ातिर
इक रंगीं सी शाम निकालो।

दुनिया टेढ़ी है ये लेकिन
तरकीबों से काम निकालो।

हाकिम हो तुम हक़ है तुमको
रोज़ नया पैग़ाम निकालो।

(हाकिम = शासक), (पैग़ाम = संदेश)

इश्क़ में खाओ धोखे लेकिन
मुंह से ना तुम नाम निकालो।

हर ख़्वाहिश कहती है 'वाहिद'
जेब से पहले दाम निकालो।

- विकास वाहिद// ६-१-१९



No comments:

Post a Comment