Friday, February 1, 2019

ज़र्द पत्तों की है चाहत, रंग धानी चाहिये

ज़र्द पत्तों की है चाहत, रंग धानी चाहिये
हर नये किरदार को ताज़ा कहानी चाहिये

कब तलक बैठा रहूँ मैं अपनी ख़ामोशी लिए
अब मेरी तन्हाई से आवाज़ आनी चाहिए

सब गुलों के दोस्त हैं या ख़ुशबुओं के पहरेदार
किसको कांटो की यहाँ पर बागबानी चाहिए

तेरी यादों के सिवा कुछ भी नहीं इस ज़हन में
बेवजह ज़िंदा रखे वो शय भुलानी चाहिए

सोने चांदी की हों या फिर हों मुहब्बत की 'मलंग'
पाँव जो जकड़े वो ज़ंजीरें छुड़ानी चाहिए

- सुधीर बल्लेवार 'मलंग'

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