वो कौन हैं फूलों की हिफ़ाज़त नहीं करते
सुनते हैं जो ख़ुशबू से मोहब्बत नहीं करते
तुम हो कि अभी शहर में मसरूफ़ बहुत हो
हम हैं कि अभी ज़िक्र-ए-शहादत नहीं करते
क़ुरआन का मफ़्हूम उन्हें कौन बताए
आँखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते
(मफ़्हूम = मतलब, समझ, अभिप्राय), (तिलावत = प्रार्थना, जप)
साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी
ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते
(साहिल = किनारा)
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
इस मौसम-ए-जम्हूर में वो गुल भी खिले हैं
जो साहिब-ए-आलम की हिमायत नहीं करते
(मौसम-ए-जम्हूर = लोकतंत्र, प्रजातंत्र का मौसम), (हिमायत = पक्षपात, तरफ़दारी)
हम बंदा-ए-नाचीज़ गुनहगार हैं लेकिन
वो भी तो ज़रा बारिश-ए-रहमत नहीं करते
(बारिश-ए-रहमत = आशीर्वाद/ कृपा की बारिश)
चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायाँ
आईने मगर कोई सियासत नहीं करते
शबनम को भरोसा है बहुत बर्ग-ए-अमाँ पर
'ख़ुर्शीद' भी दानिस्ता क़यामत नहीं करते
(बर्ग-ए-अमाँ = सुरक्षा/ हिफ़ाज़त/ पनाह की पत्ती), (दानिस्ता = जान बूझ कर)
-खुर्शीद अकबर
सुनते हैं जो ख़ुशबू से मोहब्बत नहीं करते
तुम हो कि अभी शहर में मसरूफ़ बहुत हो
हम हैं कि अभी ज़िक्र-ए-शहादत नहीं करते
क़ुरआन का मफ़्हूम उन्हें कौन बताए
आँखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते
(मफ़्हूम = मतलब, समझ, अभिप्राय), (तिलावत = प्रार्थना, जप)
साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी
ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते
(साहिल = किनारा)
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
इस मौसम-ए-जम्हूर में वो गुल भी खिले हैं
जो साहिब-ए-आलम की हिमायत नहीं करते
(मौसम-ए-जम्हूर = लोकतंत्र, प्रजातंत्र का मौसम), (हिमायत = पक्षपात, तरफ़दारी)
हम बंदा-ए-नाचीज़ गुनहगार हैं लेकिन
वो भी तो ज़रा बारिश-ए-रहमत नहीं करते
(बारिश-ए-रहमत = आशीर्वाद/ कृपा की बारिश)
चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायाँ
आईने मगर कोई सियासत नहीं करते
शबनम को भरोसा है बहुत बर्ग-ए-अमाँ पर
'ख़ुर्शीद' भी दानिस्ता क़यामत नहीं करते
(बर्ग-ए-अमाँ = सुरक्षा/ हिफ़ाज़त/ पनाह की पत्ती), (दानिस्ता = जान बूझ कर)
-खुर्शीद अकबर
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