Sunday, February 3, 2019

वो कौन हैं फूलों की हिफ़ाज़त नहीं करते

वो कौन हैं फूलों की हिफ़ाज़त नहीं करते
सुनते हैं जो ख़ुशबू से मोहब्बत नहीं करते

तुम हो कि अभी शहर में मसरूफ़ बहुत हो
हम हैं कि अभी ज़िक्र-ए-शहादत नहीं करते

क़ुरआन का मफ़्हूम उन्हें कौन बताए
आँखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते

(मफ़्हूम = मतलब, समझ, अभिप्राय), (तिलावत = प्रार्थना, जप)

साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी
ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते

(साहिल = किनारा)

हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते

इस मौसम-ए-जम्हूर में वो गुल भी खिले हैं
जो साहिब-ए-आलम की हिमायत नहीं करते

(मौसम-ए-जम्हूर = लोकतंत्र, प्रजातंत्र का मौसम), (हिमायत = पक्षपात, तरफ़दारी)

हम बंदा-ए-नाचीज़ गुनहगार हैं लेकिन
वो भी तो ज़रा बारिश-ए-रहमत नहीं करते

(बारिश-ए-रहमत = आशीर्वाद/ कृपा की बारिश)

चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायाँ
आईने मगर कोई सियासत नहीं करते

शबनम को भरोसा है बहुत बर्ग-ए-अमाँ पर
'ख़ुर्शीद' भी दानिस्ता क़यामत नहीं करते

(बर्ग-ए-अमाँ = सुरक्षा/ हिफ़ाज़त/ पनाह की पत्ती), (दानिस्ता = जान बूझ कर)

-खुर्शीद अकबर

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