ये दौर-ए-मसर्रत ये तेवर तुम्हारे
उभरने से पहले न डूबें सितारे
(दौर-ए-मसर्रत = उन्माद/ ख़ुमार/ प्रमाद का दौर)
भँवर से लड़ो, तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
(तुंद = तेज़, भीषण)
अजब चीज़ है ये मोहब्बत की बाज़ी
जो हारे वो जीते जो जीते वो हारे
सियह नागिनें बन के डसती हैं किरनें
कहाँ कोई ये रोज़-ए-रौशन गुज़ारे
(सियह = काली, अँधेरी), (रोज़-ए-रौशन - उज्जवल/ उजला/ शुभ दिन)
सफ़ीने वहाँ डूब कर ही रहे हैं
जहाँ हौसले ना-ख़ुदाओं ने हारे
(सफ़ीना = किश्ती, नाव), (नाख़ुदा = मल्लाह, नाविक)
कई इन्क़िलाबात आए जहाँ में
मगर आज तक दिन न बदले हमारे
'रज़ा' सैल-ए-नौ की ख़बर दे रहे हैं
उफ़ुक़ को ये छूते हुए तेज़ धारे
(सैल-ए-नौ = नए प्रवाह/ धारे), (उफ़ुक़ = क्षितिज)
-रज़ा हमदानी
उभरने से पहले न डूबें सितारे
(दौर-ए-मसर्रत = उन्माद/ ख़ुमार/ प्रमाद का दौर)
भँवर से लड़ो, तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
(तुंद = तेज़, भीषण)
अजब चीज़ है ये मोहब्बत की बाज़ी
जो हारे वो जीते जो जीते वो हारे
सियह नागिनें बन के डसती हैं किरनें
कहाँ कोई ये रोज़-ए-रौशन गुज़ारे
(सियह = काली, अँधेरी), (रोज़-ए-रौशन - उज्जवल/ उजला/ शुभ दिन)
सफ़ीने वहाँ डूब कर ही रहे हैं
जहाँ हौसले ना-ख़ुदाओं ने हारे
(सफ़ीना = किश्ती, नाव), (नाख़ुदा = मल्लाह, नाविक)
कई इन्क़िलाबात आए जहाँ में
मगर आज तक दिन न बदले हमारे
'रज़ा' सैल-ए-नौ की ख़बर दे रहे हैं
उफ़ुक़ को ये छूते हुए तेज़ धारे
(सैल-ए-नौ = नए प्रवाह/ धारे), (उफ़ुक़ = क्षितिज)
-रज़ा हमदानी
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