Sunday, June 2, 2019

सुन कर मिरी ग़ज़ल को कहीं, मुस्कुरा न दे
यानी मिरे ख़याल को, पैकर बना न दे

यूँ ग़म छुपा के हँसता हूँ, जैसे नया रईस
अहबाब को भी अपना, पुराना पता न दे

-अफ़सर अमरोहवी

(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख, जिस्म), (अहबाब = दोस्त, प्रिय-जन, स्वजन, मित्र)

1 comment:

  1. ये क्या सोचेंगे ? वो क्या सोचेंगे ?
    दुनिया क्या सोचेगी ?
    इससे ऊपर उठकर कुछ सोच, जिन्दगीं सुकून
    का दूसरा नाम नहीं है
    kaka ki shayari

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