सुन कर मिरी ग़ज़ल को कहीं, मुस्कुरा न दे
यानी मिरे ख़याल को, पैकर बना न दे
यूँ ग़म छुपा के हँसता हूँ, जैसे नया रईस
अहबाब को भी अपना, पुराना पता न दे
-अफ़सर अमरोहवी
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख, जिस्म), (अहबाब = दोस्त, प्रिय-जन, स्वजन, मित्र)
यानी मिरे ख़याल को, पैकर बना न दे
यूँ ग़म छुपा के हँसता हूँ, जैसे नया रईस
अहबाब को भी अपना, पुराना पता न दे
-अफ़सर अमरोहवी
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख, जिस्म), (अहबाब = दोस्त, प्रिय-जन, स्वजन, मित्र)
ये क्या सोचेंगे ? वो क्या सोचेंगे ?
ReplyDeleteदुनिया क्या सोचेगी ?
इससे ऊपर उठकर कुछ सोच, जिन्दगीं सुकून
का दूसरा नाम नहीं है
kaka ki shayari