Friday, July 5, 2019

गुलों ने ख़ारों के छेड़ने पर, सिवा ख़मोशी के दम न मारा
शरीफ़ उलझें गर किसी से, तो फिर शराफ़त कहाँ रहेगी?

- शाद अज़ीमाबादी

(ख़ार = कांटे)

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