Saturday, August 24, 2019

सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं

सिलसिला मेरे सफ़र का कभी टूटा ही नहीं
मैं किसी मोड़ पे दम लेने को ठहरा ही नहीं

ख़ुश्क होंटों के तसव्वुर से लरज़ने वालों
तुम ने तपता हुआ सहरा कभी देखा ही नहीं

(तसव्वुर = ख़याल, विचार, याद), (सहरा = रेगिस्तान)

अब तो हर बात पे हँसने की तरह हँसता हूँ
ऐसा लगता है मिरा दिल कभी टूटा ही नहीं

मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी
तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं

(सहरा = रेगिस्तान)

ऐसी वीरानी थी दर पे कि सभी काँप गए
और किसी ने पस-ए-दीवार तो देखा ही नहीं

(पस-ए-दीवार = दीवार के पीछे)

मुझ से मिलती ही नहीं है कभी मिलने की तरह
ज़िंदगी से मिरा जैसे कोई रिश्ता ही नहीं

-सुल्तान अख़्तर

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