Tuesday, September 10, 2019

एक लम्हा भी मसर्रत का बहुत होता है
लोग जीने का सलीक़ा ही कहाँ रखते हैं
-ज़मीर जाफ़री

(मसर्रत = हर्ष, आनंद, ख़ुशी)

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