Wednesday, July 3, 2024

नहीं हम में कोई अनबन नहीं है
बस इतना है की अब वो मन नहीं है।

मैं अपने आपको सुलझा रहा हूँ,
उन्हें लेकर कोई उलझन नहीं है।

मुझे वो गैर भी क्यूँ कह रहे हैं,
भला क्या ये भी अपनापन नहीं है।

किसी के मन को भी दिखला सके जो
कहीं ऐसा कोई दर्पण नहीं है।

मैं अपने दोस्तों के सदके लेकिन
मेरा क़ातिल कोई दुश्मन नहीं है।

-मंगल 'नसीम'
मुझसे मेरा मन मत मांगो 
मन का भी इक मन होता है 

तुम आये मन यूँ महका ज्यूँ 
महका चन्दन-वन होता है 

सुंदरता होती है मन की 
तन तो पैराहन होता है 
(पैराहन = लिबास, कपड़े)

-मंगल नसीम
अपना आलम भी अजब आलम-ए-तन्हाई है
पहलू-ए-ज़ीस्त नहीं मौत की आग़ोश नहीं
-सत्यपाल "पैहम"
 वो और होंगे जिन से ये उक़दा खुला नहीं
लेकिन मैं अपनी ज़ात से ना-आश्ना नहीं

आँसू नहीं  ग़ुरूर नहीं और हया नहीं
आँखों में है ये क्या जो मुझे सूझता नहीं

ऐ दिल ज़माने भर से तवक़्क़ो बजा नहीं
हर कोई बावफ़ा सर-ए-राह-ए-वफ़ा नहीं

अपने किए पे तुम हो पशेमान किसलिए
ये रंज-ओ-ग़म ये दर्द मेरा मस'अला नहीं

कुछ कुछ ख़याल-ए-यार में उलझा हुआ तो है
यूँ ख़ास कशमकश में ये दिल मुब्तिला नहीं

दिल तो है फिर भी दिल इसे रखिए सँभाल कर
माना कि आजकल ये किसी काम का नहीं

बाक़ी रहा न लुत्फ़ सवाल-ओ-जवाब में
हर बात पे वो कहते हैं मुझ को पता नहीं

'पैहम' को आते देख के चिढ़ते हो किसलिए
वाइज़ नहीं वो शैख़ नहीं पारसा नहीं

-सत्यपाल 'पैहम'
 उन के पीछे दिल-ए-नादान कहाँ जाता है
बन के तकलीफ़ का सामान कहाँ जाता है

नज़र अन्दाज़ न कर जोश-ए-जुनूँ देख इधर
ये रहा मेरा गिरेबान कहाँ जाता है
 - सत्यपाल 'पैहम'