Wednesday, July 3, 2024

 वो और होंगे जिन से ये उक़दा खुला नहीं
लेकिन मैं अपनी ज़ात से ना-आश्ना नहीं

आँसू नहीं  ग़ुरूर नहीं और हया नहीं
आँखों में है ये क्या जो मुझे सूझता नहीं

ऐ दिल ज़माने भर से तवक़्क़ो बजा नहीं
हर कोई बावफ़ा सर-ए-राह-ए-वफ़ा नहीं

अपने किए पे तुम हो पशेमान किसलिए
ये रंज-ओ-ग़म ये दर्द मेरा मस'अला नहीं

कुछ कुछ ख़याल-ए-यार में उलझा हुआ तो है
यूँ ख़ास कशमकश में ये दिल मुब्तिला नहीं

दिल तो है फिर भी दिल इसे रखिए सँभाल कर
माना कि आजकल ये किसी काम का नहीं

बाक़ी रहा न लुत्फ़ सवाल-ओ-जवाब में
हर बात पे वो कहते हैं मुझ को पता नहीं

'पैहम' को आते देख के चिढ़ते हो किसलिए
वाइज़ नहीं वो शैख़ नहीं पारसा नहीं

-सत्यपाल 'पैहम'

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