इक दवात एक क़लम हो तो ग़ज़ल होती है
जब ये सामान बहम हो तो ग़ज़ल होती है
(बहम = एक जगह)
मुफ़लिसी, इश्क़, मरज़, भूख, बुढ़ापा, औलाद,
दिल को हर क़िस्म का ग़म हो तो ग़ज़ल होती है
(मुफ़लिसी = ग़रीबी)
पूँछ कुत्ते की जो टेढ़ी हो तो कुछ भी न बने
और तेरी ज़ुल्फ़ में ख़म हो तो ग़ज़ल होती है
सिर्फ़ ठर्रे' से तो क़तआत ही मुमकिन हैं 'फ़िराक़',
हाँ, अगर व्हिस्कि-ओ-रम हो तो ग़ज़ल होती है
-फ़िराक़ गोरखपुरी
जब ये सामान बहम हो तो ग़ज़ल होती है
(बहम = एक जगह)
मुफ़लिसी, इश्क़, मरज़, भूख, बुढ़ापा, औलाद,
दिल को हर क़िस्म का ग़म हो तो ग़ज़ल होती है
(मुफ़लिसी = ग़रीबी)
पूँछ कुत्ते की जो टेढ़ी हो तो कुछ भी न बने
और तेरी ज़ुल्फ़ में ख़म हो तो ग़ज़ल होती है
सिर्फ़ ठर्रे' से तो क़तआत ही मुमकिन हैं 'फ़िराक़',
हाँ, अगर व्हिस्कि-ओ-रम हो तो ग़ज़ल होती है
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