Sunday, October 21, 2012

जैसे किसी बच्चे को खिलोने न मिले हों
फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए

यों पहले भी अपना-सा यहाँ कुछ तो नहीं था
अब और नज़ारे हमें लगते हैं पराए

-दुष्यंत कुमार

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