अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए
तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए
तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए
[(सहर = सुबह, प्रातःकाल); (आफ़ताब = सूरज)]
हुज़ूर! आरिज़ो-ओ-रुख़सार क्या तमाम बदन
मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए
मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए
उठा के फेंक दो खिड़की से साग़र-ओ-मीना
ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तयाब हो जाए
ये तिश्नगी जो तुम्हें दस्तयाब हो जाए
[(तिश्नगी = प्यास); (दस्तयाब = प्राप्त)]
वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं
सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए
सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए
(रबाब = सारंगी की तरह का एक प्रकार का बाजा)
बहुत क़रीब न आओ यक़ीं नहीं होगा
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
ये आरज़ू भी अगर कामयाब हो जाए
ग़लत कहूँ तो मेरी आक़बत बिगड़ती है
जो सच कहूँ तो ख़ुदी बेनक़ाब हो जाए
जो सच कहूँ तो ख़ुदी बेनक़ाब हो जाए
(आक़बत = परलोक, भविष्य)
-दुष्यंत कुमार
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