रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ।पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ ।
(मरासिम = मेल-जोल)
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ ।
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ ।
(पिन्दार-ए-मुहब्बत = मुहब्बत का अभिमान)
एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ ।
[(लज़्ज़त-ए-गिरिया = रोने का आनंद); (महरूम= वंचित); (राहत-ए-जाँ=मन को प्रसन्न करने वाली)]
अब तक दिल-ए-ख़ुश’फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ ।
माना कि मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ ।
जैसे तुझे आते हैं, ना आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिये आ ।
-अहमद फ़राज़
Mehdi Hassan
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