Sunday, November 11, 2012

सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे,
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे

कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ,
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे


ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है, 
दिखा दिया किसी कमज़र्फ़ ने छलक के मुझे 

(कमज़र्फ़ = ओछा, तुच्छ)

हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे, 
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे 

बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में,
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे
-राहत इन्दौरी
 

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