Thursday, February 14, 2013

वो हमसफ़र था, मग़र उससे हमनवाई न थी

वो हमसफ़र था मगर उस से हमनवाई न थी,
कि धूप छाँव का आलम रहा, जुदाई न थी ।

[(हमनवाई = मतैक्य, एक राय, सहमती), ( आलम = अवस्था, दशा)]

अदावतें थीं, तग़ाफुल था, रंजिशें थीं मगर,
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी ।

(अदावत = बैर, दुश्मनी), (तग़ाफुल = बेरुखी, उपेक्षा), (रंजिश = वैमनस्य)

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी ।

किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन,
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी ।

(सदा = आवाज़)

कभी ये हाल की दोनों में यकदिली थी बहुत,
कभी ये मरहला जैसे की आशनाई न थी ।

(यक-दिली = घनिष्ठता, एकता, मित्रता), ( मरहला = पड़ाव, ठिकाना, मंजिल), ( आशनाई = जान-पहचान)

न अपना रंज न औरों का दुःख न तेरा मलाल,
शब-ए-फ़िराक कभी हमने यूँ गँवाई न थी ।

(मलाल = अफ़सोस), (शब-ए-फ़िराक़ = जुदाई की रात)

मुहब्बतों का सफ़र कुछ इस तरह भी गुज़रा था,
शिकस्ता-दिल थे मुसाफिर, शिकस्ता-पाई न थी ।

(शिकस्ता-दिल = टूटा हुआ दिल), ( शिकस्ता-पाई = पाँव टूट जाना, अपाहिज हो जाना)

अजीब होती है ये राह-ए-सुखन भी देख 'नसीर',
वहाँ भी आ गए आखिर जहां रसाई न थी ।

[(राह-ए-सुख़न = कविता/ शायरी/ बातचीत की राह), (रसाई = पहुँच)]

-नसीर तुराबी

आबिदा परवीन/ Abida Parveen

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