Sunday, April 28, 2013

तू वो क़तरा था जो, अश्के-अरबाबे-नज़र बन सकता था,
तू जाके सदफ़ में क्यों बैठा, जब यूँ ही गुहर बन सकता था।
- आनंद नारायण मुल्ला

 [(अश्के-अरबाबे-नज़र = दिव्यदृष्टी वालों के आँसू), (सदफ़ = सीप), (गुहर = मोती)]

2 comments:

  1. Nice to see my Grand Uncles shayari again,thanks keep it up.

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