तू वो क़तरा था जो, अश्के-अरबाबे-नज़र बन सकता था,
तू जाके सदफ़ में क्यों बैठा, जब यूँ ही गुहर बन सकता था।
- आनंद नारायण मुल्ला
[(अश्के-अरबाबे-नज़र = दिव्यदृष्टी वालों के आँसू), (सदफ़ = सीप), (गुहर = मोती)]
तू जाके सदफ़ में क्यों बैठा, जब यूँ ही गुहर बन सकता था।
- आनंद नारायण मुल्ला
[(अश्के-अरबाबे-नज़र = दिव्यदृष्टी वालों के आँसू), (सदफ़ = सीप), (गुहर = मोती)]
Nice to see my Grand Uncles shayari again,thanks keep it up.
ReplyDeleteHe is a great poet. It's my pleasure.
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