किसलिए कीजे बज़्म-आराई
पुरसुकूँ हो गई है तऩ्हाई
[(बज़्म-आराई = महफ़िल सजाना), (पुरसुकूँ = शांति/ चैन से भरी हुई)]
फ़िर् ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है
फ़िर ख़यालात ने ली अंगड़ाई
यूँ सुकूँ-आशना हुए लम्हे
बूँद में जैसे आए गहराई
(सुकूँ-आशना = शांत)
इक से इक वाक़िआ हुआ लेकिन
न गई तेरे ग़म की यकताई
[(वाक़िआ = घटना), (यकताई = अनोखापन)]
कोई शिकवा न ग़म, न कोई याद
बैठे-बैठे बस आँख भर आई
ढलकी शानों से हर यकीं की क़बा
ज़िन्दगी ले रही है अंगड़ाई
[(शानों = कन्धों), (यकीं की क़बा = विश्वास का वस्त्र)]
-जावेद अख़्तर
पुरसुकूँ हो गई है तऩ्हाई
[(बज़्म-आराई = महफ़िल सजाना), (पुरसुकूँ = शांति/ चैन से भरी हुई)]
फ़िर् ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है
फ़िर ख़यालात ने ली अंगड़ाई
यूँ सुकूँ-आशना हुए लम्हे
बूँद में जैसे आए गहराई
(सुकूँ-आशना = शांत)
इक से इक वाक़िआ हुआ लेकिन
न गई तेरे ग़म की यकताई
[(वाक़िआ = घटना), (यकताई = अनोखापन)]
कोई शिकवा न ग़म, न कोई याद
बैठे-बैठे बस आँख भर आई
ढलकी शानों से हर यकीं की क़बा
ज़िन्दगी ले रही है अंगड़ाई
[(शानों = कन्धों), (यकीं की क़बा = विश्वास का वस्त्र)]
-जावेद अख़्तर
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