Sunday, June 30, 2013

आप से मिलके हम कुछ बदल से गए,
शेर पढ़ने लगे, गुनगुनाने लगे
पहले मशहूर थी अपनी संजीदगी ,
अब तो जब देखिये मुस्कुराने लगे

हमको लोगों से मिलने का कब शौक़ था,
महफ़िले-आराई का कब हमें ज़ौक़ था
आपके वास्ते हमने ये भी किया,
मिलने जुलने लगे, आने जाने लगे

[(महफ़िले-आराई = महफ़िल सजाना), (ज़ौक़ = स्वाद, मजा, लुत्फ़)]

हमने जब आपकी देखीं दिलचस्पियां,
आ गईं चंद हममें भी तब्दीलियां
इक मुसव्विर से भी हो रही दोस्ती,
और ग़ज़लें भी सुनने सुनाने लगे

(मुसव्विर = तस्वीर बनाने वाला, चित्रकार)

आप के बारे में पूछ बैठा कोई,
क्या कहें हमसे क्या बदहवासी हुई
कहनेवालीं जो थी बातें वो ना कहीं,
बात जो थी छुपानी बताने लगे

इश्क़ बेघर करे इश्क़ बेदर करे,
इश्क़ का सच है कोई ठिकाना नहीं
हम जो कल तक ठिकाने के थे आदमी,
आपसे मिलके कैसे ठिकाने लगे

- जावेद अख़्तर


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