Wednesday, July 10, 2013

नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद,
या रब अगर इन कर्दा गुनाहों की सज़ा है ।
-मिर्ज़ा ग़ालिब

(कर्दा = किया हुआ)

जो गुनाह हमने किये हैं, अगर उनकी सज़ा मिलना ज़रूरी है तो जो गुनाह अपनी प्रवृति के कारण हम नहीं कर सके और उनकी हसरत दिल में रह गई, उनकी शाबाशी भी मिलनी चाहिए।

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