Saturday, July 13, 2013

सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आजाद है

(नाशाद = दुखी)

कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है

(मेआर = मानदंड)

जिस शहर में मुंतज़िम अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है

(मुंतज़िम = प्रबंधक, व्यवस्थापक),

ये नई पीढ़ी पे मबनी है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं है कि नक्सलवाद है

[(मबनी = निर्भर), (मौजूं = उचित, उपयुक्त)]

यह ग़ज़ल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ‘ठंडे गोश्त’ की रुदाद है

(रुदाद = वृतांत, विवरण)

-अदम गोंडवी

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