Monday, July 29, 2013

जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है
एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है

(गल्प = मिथ्या)

चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चाँद-सितारे छू आए
लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है

इन्द्र-धनुष के पुल से गुज़र कर इस बस्ती तक आए हैं
जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिन्दास भी है

कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है

-अदम गोंडवी

No comments:

Post a Comment