Thursday, August 8, 2013

जब से बुलबुल तूने दो तिनके लिये
टूटती है बिजलियाँ इनके लिये

है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
सादगी गहना है उस सिन के लिये

तुन्द मय और ऐसे कमसिन के लिये
साक़िया हल्की-सी ला इन के लिये

मुझ से रुख़्सत हो मेरा अहद-ए-शबाब
या ख़ुदा रखना न उस दिन के लिये

कौन वीराने में देखेगा बहार
फूल जंगल में खिले किनके लिये

सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैंने दुनिया छोड़ दी जिन के लिये

बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के रंग की
भेजनी हैं एक कमसिन के लिये

सब हसीं हैं ज़ाहिदों को नापसन्द
अब कोई हूर आयेगी इनके लिये

वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिये

लाश पर इबरत ये कहती है 'अमीर'
आये थे दुनिया में इस दिन के लिये
-अमीर मीनाई

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