Sunday, August 11, 2013

ज़ख़्म को फूल, तो सरसर को सबा कहते हैं
जाने क्या दौर है, क्या लोग हैं, क्या कहते हैं

[(सरसर = आँधी), (सबा = पुरवाई, शीतल हवा, मंद समीर)]

क्या क़यामत है, के जिन के लिये, रुक रुक के चले
अब वही लोग हमें आबला-पा कहते हैं

(आबला-पा = छाले वाले पाँव)

कोई बतलाओ के इक उम्र का बिछड़ा महबूब
इत्तेफ़ाक़न कहीं मिल जाये तो क्या कहते हैं

ये भी अन्दाज़-ए-सुख़न है के जफ़ा को तेरी
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा कहते हैं

(अन्दाज़-ए-सुख़न = बात कहने का अंदाज़), (जफ़ा  = जुल्म, अत्याचार), (ग़म्ज़ा = प्रेमिका का नखरा और हाव-भाव), (इश्वा = सुन्दर स्त्री का हाव-भाव), (ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अन्दाज़-ओ-अदा = नखरे, अंदाज़ और अदा)

जब तलक दूर है तू, तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू न सकें, उस को ख़ुदा कहते हैं

(परस्तिश = पूजा, आराधना)

क्या त'अज्जुब है, के हम अह्ल-ए-तमन्ना को, फ़राज़
वो जो, महरूम-ए-तमन्ना हैं, बुरा कहते हैं

(अह्ल-ए-तमन्ना = इच्छुक लोग), (महरूम-ए-तमन्ना = इच्छा से रहित)

-अहमद फ़राज़

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