लिपटा मैं बोसा लेके तो बोले कि देखिये
यह दूसरी ख़ता है, वह पहला क़ुसूर था
-अमीर मीनाई
(बोसा = चुम्बन)
हम बोसा लेके उनसे अजब चाल चल गए
यूँ बख़्शवा लिया कि यह पहला क़ुसूर था
-दाग़
एक तरफ़ दाग़ और अमीर हैं कि ख़ता करते हैं फिर शान से माफ़ी माँग लेते हैं और दूसरी तरफ़ ग़ालिब हैं कि जागते हुए नहीं बल्कि सोते हुए भी और वो भी पाँव का बोसा लेने की हिम्मत नहीं कर पाते।
ले तो लूँ, सोते में उस के पाँव का बोसा, मगर
ऐसी बातों से, वह काफ़िर बदगुमाँ हो जाएगा
-मिर्ज़ा ग़ालिब
यह दूसरी ख़ता है, वह पहला क़ुसूर था
-अमीर मीनाई
(बोसा = चुम्बन)
हम बोसा लेके उनसे अजब चाल चल गए
यूँ बख़्शवा लिया कि यह पहला क़ुसूर था
-दाग़
एक तरफ़ दाग़ और अमीर हैं कि ख़ता करते हैं फिर शान से माफ़ी माँग लेते हैं और दूसरी तरफ़ ग़ालिब हैं कि जागते हुए नहीं बल्कि सोते हुए भी और वो भी पाँव का बोसा लेने की हिम्मत नहीं कर पाते।
ले तो लूँ, सोते में उस के पाँव का बोसा, मगर
ऐसी बातों से, वह काफ़िर बदगुमाँ हो जाएगा
-मिर्ज़ा ग़ालिब
:) :) :)
ReplyDeletesp
Bekhudi me le liya bosa khata kije muaf ,Ye dil-e-betab ki saari khata thi main na tha ..Bahadur Shah Zafar.
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