बरसों रुत के मिज़ाज सहता है
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
जिस्म ऐसा लिबास है साहब
चाहने से नया नहीं होता
घर से बेटी गई तो याद आया
फल कभी पेड़ का नहीं होता
-हस्तीमल 'हस्ती'
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता
जिस्म ऐसा लिबास है साहब
चाहने से नया नहीं होता
घर से बेटी गई तो याद आया
फल कभी पेड़ का नहीं होता
-हस्तीमल 'हस्ती'
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