Saturday, May 30, 2015

मुहब्बत ऐसा नग़मा है

मुहब्बत ऐसा नग़मा है
ज़रा भी झोल हो लय में
तो सुर कायम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा शोला है
हवा जैसी भी चलती हो
कभी मद्धम नहीं होता

मुहब्बत ऐसा रिश्ता है
के जिसमे बंधने वालों के
दिलों में ग़म नहीं होता

मुहब्बत ऐसा पौधा है
जो तब भी सब्ज़ रहता है
के जब मौसम नहीं होता

(सब्ज़ = हरा)

मुहब्बत ऐसा रास्ता है
अगर पैरों में लर्ज़िश हो
तो ये महरम नहीं होता

(लर्ज़िश = कंपकंपी, थरथराहट), (महरम = अंतरंग मित्र, सुपरिचित)

मुहब्बत ऐसा दरिया है
के बारिश रूठ भी जाये
तो पानी कम नहीं होता
-अमजद इस्लाम अमजद

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