Saturday, May 30, 2015

क्या ठान के निकला था, कहाँ आ के पड़ा है
पूछे तो कोई इस दिल-ए-शर्मिंदा सफ़र से

'अमजद' न क़दम रोक के वो दूर की मंजिल
निकलेगी किसी रोज़ इसी गर्द-ए-सफ़र से

(गर्द-ए-सफ़र = यात्रा की धूल)

-अमजद इस्लाम अमजद

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