रामकृष्ण और रमण
रोग की यातना दोनों ने सही थी ।
मगर अपने अंतिम दिनों में
महर्षि ने एक बात कही थी ।
जीवन भोज है
शरीर केले का पत्ता है ।
इस पत्ते पर आदमी
भोजन तो बड़े प्रेम से करता है ।
लेकिन खाना ख़त्म होते ही
वह उसे फेंक देता है ।
जूठा पत्ता भी कभी कोई
सँभाल कर धरता है ।
-रामधारी सिंह 'दिनकर'
पुस्तक: भग्न वीणा
रोग की यातना दोनों ने सही थी ।
मगर अपने अंतिम दिनों में
महर्षि ने एक बात कही थी ।
जीवन भोज है
शरीर केले का पत्ता है ।
इस पत्ते पर आदमी
भोजन तो बड़े प्रेम से करता है ।
लेकिन खाना ख़त्म होते ही
वह उसे फेंक देता है ।
जूठा पत्ता भी कभी कोई
सँभाल कर धरता है ।
-रामधारी सिंह 'दिनकर'
पुस्तक: भग्न वीणा
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