मिरे वजूद में थे दूर तक अँधेरे भी
कहीं कहीं पे छुपे थे मगर सवेरे भी
निकल पड़े थे तो फिर राह में ठहरते क्या
यूँ आस-पास कई पेड़ थे घनेरे भी
ये शहर-ए-सब्ज़ है लेकिन बहुत उदास हुए
ग़मों की धूप में झुलसे हुए थे डेरे भी
(शहर-ए-सब्ज़ = जीवंत/ ज़िंदादिल शहर)
हुदूद-ए-शहर से बाहर भी बस्तियाँ फैलीं
सिमट के रह गए यूँ जंगलों के घेरे भी
(हुदूद-ए-शहर = शहर की हदों)
समुंदरों के ग़ज़ब को गले लगाए हुए
कटे-फटे थे बहुत दूर तक जज़ीरे भी
(जज़ीरे = द्वीप)
-खलील तनवीर
कहीं कहीं पे छुपे थे मगर सवेरे भी
निकल पड़े थे तो फिर राह में ठहरते क्या
यूँ आस-पास कई पेड़ थे घनेरे भी
ये शहर-ए-सब्ज़ है लेकिन बहुत उदास हुए
ग़मों की धूप में झुलसे हुए थे डेरे भी
(शहर-ए-सब्ज़ = जीवंत/ ज़िंदादिल शहर)
हुदूद-ए-शहर से बाहर भी बस्तियाँ फैलीं
सिमट के रह गए यूँ जंगलों के घेरे भी
(हुदूद-ए-शहर = शहर की हदों)
समुंदरों के ग़ज़ब को गले लगाए हुए
कटे-फटे थे बहुत दूर तक जज़ीरे भी
(जज़ीरे = द्वीप)
-खलील तनवीर
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