ये माना के नज़रे इनायत नहीं
मगर ज़िन्दगी से शिकायत नहीं।
मिले गर कहीं तो करें गुफ़्तगू
हमें ज़िन्दगी से अदावत नहीं।
मुहब्बत करो फिर वफ़ा भी करो
यहां कोई ऐसी रवायत नहीं।
अभी और शायद उठाने हैं ग़म
अभी उसकी हमपे इनायत नहीं।
लकीरें ही हैं चंद हाथों में बस
सिवा और कोई विरासत नहीं।
- विकास वाहिद
२९/०५/२०१९
मगर ज़िन्दगी से शिकायत नहीं।
मिले गर कहीं तो करें गुफ़्तगू
हमें ज़िन्दगी से अदावत नहीं।
मुहब्बत करो फिर वफ़ा भी करो
यहां कोई ऐसी रवायत नहीं।
अभी और शायद उठाने हैं ग़म
अभी उसकी हमपे इनायत नहीं।
लकीरें ही हैं चंद हाथों में बस
सिवा और कोई विरासत नहीं।
- विकास वाहिद
२९/०५/२०१९
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