इश्क़ की इक किताब जैसे हैं
हम महकते गुलाब जैसे हैं।
हमको रखना छुपा के आंखों में
हम सवेरे के ख़्वाब जैसे हैं।
मुश्किलों में भी काम आएंगे
तजुर्बों की किताब जैसे हैं।
ना तो पैकर कोई गुमाँ भी नहीं
हम तो बस इक सराब जैसे हैं।
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख), (सराब = मृगतृष्णा, मरीचिका)
अब सजा दो हमें क़रीने से
एक ख़स्ता किताब जैसे हैं।
हमको भर लो निगाह में अपनी
डूबते आफ़ताब जैसे हैं।
(आफ़ताब = सूरज)
कब हुए हैं किसी भी आंगन के
एक उड़ते सहाब जैसे हैं।
(सहाब = बादल)
- विकास वाहिद ०६-०५-१९
हम महकते गुलाब जैसे हैं।
हमको रखना छुपा के आंखों में
हम सवेरे के ख़्वाब जैसे हैं।
मुश्किलों में भी काम आएंगे
तजुर्बों की किताब जैसे हैं।
ना तो पैकर कोई गुमाँ भी नहीं
हम तो बस इक सराब जैसे हैं।
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख), (सराब = मृगतृष्णा, मरीचिका)
अब सजा दो हमें क़रीने से
एक ख़स्ता किताब जैसे हैं।
हमको भर लो निगाह में अपनी
डूबते आफ़ताब जैसे हैं।
(आफ़ताब = सूरज)
कब हुए हैं किसी भी आंगन के
एक उड़ते सहाब जैसे हैं।
(सहाब = बादल)
- विकास वाहिद ०६-०५-१९
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