Wednesday, February 27, 2013

चुपके रहना न मीर, दिल में ठानो,
बोलो-चालो, कहा हमारा मानो ।

इक हर्फ़ न कह सकोगे वक़्ते-रफ़्तन,
चलने को ज़बान के ग़नीमत जानो ।
-मीर तकी मीर

[(हर्फ़ = शब्द), (वक़्ते-रफ़्तन = जाने के समय)]

No comments:

Post a Comment