Saturday, July 13, 2013

मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों की मुक़द्दर में सहर है कि नहीं

चार दिन की ये रफ़ाक़त जो रफ़ाक़त भी नहीं
उम्र भर के लिए आज़ार हुई जाती है
ज़िन्दगी यूं तो हमेशा से परेशान सी थी
अब तो हर सांस गिरांबार हुई जाती है

[(रफ़ाक़त = मित्रता, मेलजोल), (आज़ार = दुःख, कष्ट), (गिरांबार = बोझ)]

मेरी उजड़ी हुई नींदों के शबिस्तानों में
तू किसी ख़्वाब के पैकर की तरह आई है
कभी अपनी सी कभी ग़ैर नज़र आती है
कभी इख़लास की मूरत कभी हरजाई है

[(शबिस्तान = रात को रहने का स्थान, शयनगार), (पैकर = चेहरा, मुख), (इख़लास = दोस्ती, मित्रता)]

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं
तूने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओ का इज़हार करूं या न करूं

तू किसी और के दामन की कली है लेकिन
मेरी रातें तेरी ख़ुश्बू से बसी रहती हैं
तू कहीं भी हो तेरे फूल से आरिज़ की क़सम
तेरी पलकें मेरी आंखों पे झुकी रहती हैं

(आरिज़ = गाल)

तेरे हाथों की हरारत तेरे सांसों की महक
तैरती रहती है एहसास की पहनाई में
ढूंढती रहती हैं तख़ईल की बाहें तुझको
सर्द रातों की सुलगती हुई तनहाई में

(पहनाई = विस्तार, विशालता), (तख़ईल = ख्याल, सोच)

तेरा अल्ताफ़-ओ-करम एक हक़ीक़त है मगर
ये हक़ीक़त भी हक़ीक़त में फ़साना ही न हो
तेरी मानूस निगाहों का ये मोहतात पयाम
दिल के ख़ूं का एक और बहाना ही न हो

(अल्ताफ़-ओ-करम = कृपा और मेहरबानियाँ)

कौन जाने मेरी इम्रोज़ का फ़र्दा क्या है
क़ुबर्तें बढ़ के पशेमान भी हो जाती है
दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीं नज़रें
देखते देखते अंजान भी हो जाती है

[(इम्रोज़ = आज), (फ़र्दा = आने वाला दिन), (क़ुबर्तें = नजदीकियां), (पशेमान = शर्मिंदा)]

मेरी दरमांदा जवानी की तमाओं के
मुज़महिल ख़्वाब की ताबीर बता दे मुझको
तेरे दामन में गुलिस्ता भी है, वीराने भी
मेरा हासिल मेरी तक़दीर बता दे मुझको

[(दरमांदा = थका हुआ, शिथिल), (तमाओं = इच्छाओं), (मुज़महिल = शिथिल, थक हुआ), (ताबीर = परिणाम, फल)]

-साहिर लुधियानवी

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